रायगढ़। ज्योतिष शास्त्र में कहा जाता है कि जिसे राहु की महादशा लग जाए, वह शून्य से शिखर तक पहुंच जाता है, या यूं कहें कि उसे एक ही रात में सभी पहचानने लगते हैं। कुछ ऐसा ही नज़ारा इन दिनों चुनावी दंगल में भी देखने को मिल रहा है। शायद इस निकाय चुनाव में भी राहु की दशा लग गई है और कई नेताओं की लॉटरी लग गई है।
जिस प्रकार राजनीति के मंजे हुए जादूगर की तरह चुनाव प्रभारी मंत्री ने महापौर के नाम का चयन किया और लगभग सभी दावेदारों के मौन समर्थन के साथ पूरे जोश और उत्साह के साथ नामांकन दाखिले का कार्यक्रम आयोजित किया, वह काबिलेगौर है।
विपक्ष के दो निर्विरोध विकेट भी झटक लिए गए, जिससे यह चुनाव एक इवेंट जैसा माहौल बना रहा है। शहर में दो वार्डों से निर्विरोध पार्षदों के चुने जाने की ख़बर ने चुनावी गलियारों में हलचल मचा दी है।
एक आम नागरिक से प्रथम नागरिक का दावेदार बनने तक:
बीजेपी आलाकमान की हमेशा की तरह चौंका देने वाली रणनीति और एक अनजाने, अनसुने नाम को पहली रात में ही पहचान दिलाने की शैली सफल होती दिख रही है।
रेलवे स्टेशन के किनारे बसे एक साधारण परिवार में जन्मे जीवर्धन चौहान, जो अपने रिश्तेदार के घर श्री सत्यनारायण पूजा कर रहे थे, अचानक खबर मिलने पर खुद भी हैरान रह गए होंगे कि वे आम नागरिक से प्रथम बनने की दावेदारी तक पहुंच गए हैं। बीजेपी नेतृत्व ने एक जौहरी की भांति इस हीरे को पहचान लिया है। रायगढ़ की राजनीति को देखते हुए ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं:
“हवा के दोश पे उड़ती हुई ख़बर तो सुनो… ये हवा की है बात बहुत दूर जाने वाली है…”
बहरहाल, मौका है तो मत चुको चौहान वाली नीति ही कारगर होगी।
कांग्रेस का ‘डैमेज कंट्रोल’ और रणनीति:
कांग्रेस खेमे के लिए राहत की बात यह रही कि सबसे चर्चित सीट में उनके धाकड़ और तेजतर्रार समर्पित सिपाही ने नाम वापस लेकर डैमेज कंट्रोल कर लिया है। अब, संबंधों के नाते ही सही, पर दोनों पार्टियों के नेता अपने-अपने उम्मीदवारों के समर्थन में जुट गए हैं और पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
“पहले आप” के चक्कर में ट्रेन न छूट जाए?
यहां “आप” का मतलब आम आदमी पार्टी से है। जिस प्रकार उन्होंने अपने तरकश का सबसे नुकीला तीर मैदान में उतारा है और अंदरखाने जनसंपर्क में जुटे हैं, वह देखने लायक है। उनके प्रत्याशी संयम और धैर्य के साथ व्यक्तिगत रूप से मतदाताओं से मिल रहे हैं और मोबाइल के माध्यम से जनता से जुड़ रहे हैं।
जिस प्रकार पिछले चुनावों में “मटका” महज एक सप्ताह में जनता को अपने साथ समेटने में सफल हुआ था, कहीं इस बार पब्लिक आम आदमी बनकर न रह जाए?
बात टेढ़ी जरूर है, पर गौरतलब भी है…
आखिरकार जनता ही होगी असली नायक:
हार-जीत के इस खेल में नायक तो एक ही बनेगा—और वह हमारी जनता होगी। देखना दिलचस्प होगा कि रायगढ़ की जनता किसे अपना नायक चुनती है।
बने रहिए चुनावी चर्चा पर… रायगढ़ दृष्टि के साथ!
✍️📝नीतेश शर्मा।
