रायपुर। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने सरकारी टेंडरों में धर्म आधारित 4% आरक्षण देने का फैसला किया है। यह निर्णय कैबिनेट की बैठक में पास हुआ, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। सरकार के इस कदम को लेकर भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया है, इसे संविधान विरोधी बताते हुए कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति करार दिया है।
सीएम विष्णु देव साय का बयान:
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस फैसले की आलोचना करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा:
“कांग्रेस शासित कर्नाटक में शासकीय ठेके में धर्म आधारित आरक्षण देना निंदनीय और अस्वीकार्य है। जहां भी दुर्भाग्य से कांग्रेस सत्ता में होती है, वह भारतीय संविधान का सबसे पहले गला घोंटने की कोशिश करती है। यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है। धर्म आधारित आरक्षण के विरुद्ध वैसे भी अनेक बार माननीय न्यायालयों ने निर्णय दिया है। यह फैसला भी न्यायालय में टिकेगा नहीं, यह कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व भी भली-भांति जानता है।
किंतु हमेशा की तरह समाज में वैमनस्य पैदा करने के लिए कांग्रेस का यह सोचा समझा षड्यंत्र है। देश-प्रदेश के आदिवासी, दलित और वंचित लोगों को संविधान द्वारा दिये आरक्षण के साथ इस तरह खिलवाड़ सहन योग्य नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष श्री खरगे और राहुल गांधी जल्द से जल्द इसे वापस लेने का निर्देश मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को दें।
दु:खद है कि वंचित समाज से आने वाले खरगे जी, सोनिया जी और राहुल जी के बहकावे में आकर अपने ही समाज के विरुद्ध साजिशें रचने में स्वयं को इस्तेमाल होने दे रहे हैं। चेत जाइए खरगे जी। इतिहास इस तरह आपको माफ नहीं करेगा।”
वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने जताई कड़ी आपत्ति:
छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने भी कर्नाटक सरकार के इस फैसले की तीखी आलोचना की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा:
“शासकीय ठेकों में धर्म आधारित आरक्षण अस्वीकार्य है। यह संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है और कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति का स्पष्ट प्रमाण है।”
उन्होंने आगे लिखा कि आदिवासी, दलित और वंचित समुदायों के लिए आरक्षित संवैधानिक अधिकारों में किसी भी तरह की छेड़छाड़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
भाजपा ने दी कानूनी कार्रवाई की चेतावनी:
भाजपा और अन्य संगठनों ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। उनका कहना है कि यह निर्णय संविधान का उल्लंघन करता है।
क्या होगा आगे?
कर्नाटक सरकार के इस फैसले से पूरे देश में बहस छिड़ गई है। अब देखना होगा कि इस फैसले पर न्यायपालिका और जनता की प्रतिक्रिया कैसी होती है। क्या यह आरक्षण बना रहेगा या कानूनी चुनौती के सामने टिक नहीं पाएगा? यह आने वाला समय तय करेगा।
